हां टूटी थी कुछ पल, तो इसी अंधेरी रात ने संभाला था हां बिखरी थी कुछ पल, पर इसी अंधेरी रात ने समेटा था हां रोई थी कुछ पल, फिर इसी अंधेरी रात ने हंसाया था हां उलझी थी कुछ पल, इसी अंधेरी रात ने सुलझाया था दिल जो हो जाता था कभी भारी, इन टिमटिमाते तारों को देखा करती थी जब मंजिल धुंधली सी हो जाती, तो इन बादलों में अपना अक्श ढूंढ़ा करती थी रात अंधेरी जरूर है पर अकेली नहीं, करोड़ों तारें है साथ इसके और तनहाई इसके पास नहीं सीखा है मैंने इन अंधेरी रातों से यहीं, हर रात के बाद आता है जगमगाता सवेरा भी © Pallavi Dubey #अंधेरीरात