ये मंजर ये आलम, ये जहान सूना लगता है एक दूजे के खास को अपराध छूना लगता है कब तक रहेगा ये अलगाव ये खास से अपने से ये जुदाई अब तो ये दूना लगता है जाने क्या हुआ है इस जहान में