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किताब-ए-ज़ीस्त में मुझे कोई निसाब ना मिला बहुत सव

किताब-ए-ज़ीस्त में मुझे कोई निसाब ना मिला
बहुत  सवाल थे  जिन्हें कभी  जवाब  ना मिला

मिले बहुत  मुझे, मगर  कोई  सवाब  ना मिला
मिरे  हिसाब का  कोई  भी  इंतिख़ाब ना मिला

गुज़र गई ये उम्र बस, चराग़-ए-ग़म  के साए में
जो  रौशनी करे  मुझे, वो  आफ़ताब  न  मिला

बड़ी  थी  आरज़ू   मिरी,  हक़ीक़तें   सँवार  लूँ
नसीब  ख़ार  ही  हुए,  कोई  गुलाब  ना  मिला

झुलस गए बुरी तरह से हम तो दश्त-ए-इश्क़ में
कि  आब, अब्र  छोड़िए,  हमें  सराब  न  मिला

किसी  हसीन  याद का  चलो  ये  फ़ायदा  हुआ
कटी है  उम्र  हिज्र  में,  मगर  अज़ाब  ना मिला

तलाशती रही सदा, वो  जिस में अक्स  पा सकूँ
पर आईने-सा, कोई शख़्स, बे-नक़ाब ना मिला

©Parastish किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िन्दगी की किताब 
निसाब= मूल,आधार, सरमाया
सवाब= सही, ठीक
इंतिख़ाब= चयन, चुनाव, चुना जाने वाला 
ख़ार= काँटे
दश्त-ए-इश्क़= इश्क का रेगिस्तान
आब= पानी, अब्र=बादल, घटा
सराब= मरीचिका, वो रेत जो दूर से पानी की तरह दिखाई देती है
pooja7092330500628

Parastish

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Super Creator

किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िन्दगी की किताब निसाब= मूल,आधार, सरमाया सवाब= सही, ठीक इंतिख़ाब= चयन, चुनाव, चुना जाने वाला ख़ार= काँटे दश्त-ए-इश्क़= इश्क का रेगिस्तान आब= पानी, अब्र=बादल, घटा सराब= मरीचिका, वो रेत जो दूर से पानी की तरह दिखाई देती है #Quotes #ghazal #hindipoetry #sher #parastish #nojohindi

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