बुलंदियों ने तुझे क्या छुआ, समझ बैठा तूने उसे अपनी जीत, कोशिश छोड़ी तूने इमारत हासिल करने की, पर कभी अपने से यह सवाल जरूर करना की, उड़ते परिंदों ने अपनी ऊचाईयों पर घमंड क्यों नहीं किया, ना ही छोड़ी कोशिश ऊँचे इमारत तक पहुंचने की.... बुलंदियों ने तुझे क्या छुआ......