दिल मेरा आबाद हमेशा रहता है तेरा चेहरा याद हमेशा रहता है आओ करनी है तुमसे बस वो बातें लब पे जिन का स्वाद हमेशा रहता है तुम से मिलकर खुल जाते है पंख मेरे कैदी फिर आजाद हमेशा रहता है घर के कोने कोने बिखरी तन्हाई हर चप्पा नाशाद हमेशा रहता है जिस पर तेरी एक नज़र पड़ जाती है बंदा वो पुरबाद हमेशा रहता है बातों में खामोशी होती है अक्सर चुप में भी संवाद हमेशा रहता है चांद से अपने शब भर बातें करने को छत पे इक शबजाद हमेशा रहता है और गुलाबी हो जाता है शह्र मिरा तुझ से जयपुर शाद हमेशा रहता है 2*11 नाशाद=== उदास पुरबाद ===हवा से भरा, अभिमानी शबज़ाद=== रात को जागने वाला ये गज़ल इसलिए जरुरी थी की खुद ही ऐसा न लगे की पिछली गजल के बाद अब तीन महीने बाद कुछ लिख होगा, लेकिन जैसा कहा जाता है आप गजल को नहीं चुनते गजल आप को चुनती है, और इसी आस के साथ की महीने में 3-4 गज़ले तो चुन लिया करे बस इतना ही, और हां अगली बनती गजल का शेर कुछ यूं है कि काई बैचैनी ,कोई उजलत नहीं