सबकी अपनी चाहत सबकी अपनी ख़्वाहिश मेरी बस इतनी सी है कि तुम मिलने आओ... सिर्फ़ मुझसे। अपनी सभी बंदिशों से मुक्त होकर... पाने और कुछ खोने की रंजिशों के बीच अपने ख़्वाबों को संजोए। किसी मंदिर की दहलीज़ पर एक साथ सज़दे में झुको और मेरे साथ गिन गिन कर सीढियां चढो पास में बहती नदी के किनारे रेत पर बनते तेरे और मेरे क़दमों के निशाँ अपनी पलकों में संजोए। तुम रेलवे स्टेशन की किसी बैंच पर बैठो बारिश हो , ठण्डी हवा चले और मैं-- सामने वाली चाय की थड़ी से भीगता हुआ तेरे और मेरे लिए दो कप चाय लेकर आऊँ। ♥️ Challenge-977 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।