आईने से क्या बात करते रहते हो क्या नम आंखों से आईना साफ़ देखते हों ग़म के आंसु से,धुंधला पड़ा है आईना क्यूं आसु पोंछना भूल जाते हो आईने से बात करते करते वक़्त का आईना देखते हों अपनी ही दुनिया में गुम हो जाते हो बेजान आईने से, अपनी जान से रूबरू कराते हों उल्टा दिखाने वाले आईने से ही, पुराने जख्म को, ताज़ा कराते हों तु हंसे तो हंसे,तु रोएं तो रोएं ऐसे बनावटी आईने से ही कुछ बोलकर, कुछ टालकर हाल दिल का बोल देते हों अपनी ही हंसी से उसे भी खिलना सीखा देते हों हर हाल में डटे रहना बोल देते हों जो तुझमें सफ़र करता है वो आईने को ही क्यूं दिखाते हों