मुनासिब नहीं है.... ये मुनासिब नहीं है ,कि हर रोज तेरे शहर आ पाऊं। बुलाने पर तेरे,झट से तेरे पास चला आऊं। ऐसा नहीं कि दिल तेरे लिए तड़पता नहीं, तडपता है बहुत, पर इस कठिन घड़ी को कैसे समझाऊं। वो तुझसे तेरे अजनबी शहर में मिलना , देखकर तेरा मुझे,तेरे चेहरे का खिलना। वो न शर्माना तेरा ,बुलाने पर चले आना तेरा, याद आता है बहुत, हर बात पर इतराना तेरा। वो तेरा छोटा सा माथा,वो तेरी होटों की लाली। कहर ढाह गई मुझपर ,वो तेरी कानों वाली नाक की बाली। वो तेरे झुकाने पर सर ,तेरे केशों का तेरे चेहरे पर आना। तेरे केशों को संवारने पर मेरे,वो मुझसे तेरी आंखों का चुराना। वो झटकर हाथ तेरा जाना दूर मुझसे,होने पर नाराज मेरे, तेरा मेरे पास आना। बताना जल्दी जाने की वजह मुझे,देने पर मेरी सहमति, मुस्करा कर चले जाना। ऐसी ही ढेरों हैं यादें तेरी समाई दिल में मेरे, जीते जी तो क्या मरने के बाद भी न मैं इन्हें भुलाऊं। ये मुनासिब नहीं है,कि हर रोज तेरे शहर आ पाऊं। बुलाने पर तेरे,झट से तेरे पास चला आऊं। ऐसा नहीं कि दिल तेरे लिए तड़पता नहीं, तडपता है बहुत, पर इस कठिन घड़ी को कैसे समझाऊं। ©Ravindra Singh मुनासिब नहीं है.... ये मुनासिब नहीं है कि हर रोज तेरे शहर आ पाऊं। बुलाने पर तेरे, झट से तेरे पास चला आऊं।