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सज्जा सूरत सलोनी सी, नजरे जमाए बैठी हूं। महक लगी

सज्जा सूरत सलोनी सी, 
नजरे जमाए बैठी हूं। 
महक लगी तेरे प्यार की, गजरा गवाय बैठी हूं। 
सूरज न ढले प्यार का,
 वक्त को सताय बैठी हूं।
 गुमराह  ना हो प्यार मेरा, इजहार जताए बैठी हूं।
 भूल न जाओ जश्न को, ख्वाब जगाए बैठी हूं ।
नवोदित कवि- दिलीप कुमार

©PoetDileep
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