कोई यूँ ही नहीं हारता है इस ज़माने के दरमियाँ। कई विपरीत परिस्तिथियों का यँहा संगम होता है। कँही पे व्याप्त शायद छल होता है कँही मज़बूरी। जो फौलाद को ताश के पत्तो सा ढहा ले जाता है। try to understand the depthness of lines