यह कुआं कविता आज की हमारी गैप जनरेशन को दर्शाती है Read in caption मैं हूं इस गांव का बूढ़ा कुआं बहुत साल से बेकार ही पडा हूँ कभी गिराए जाते थे मुझमें भी बर्तन के ढेर छपाक सी आवाज आती थी मकीन(मकान) में रहने वाले लोगों की शोराशीयां(शोर) बच्चों की हंसी किलकारियां रस्सी के साथ-साथ चेहरे पर खुशियां छलकती थी