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"मेरी पोटली कहानी का, यह तीसरा अंश है, कृपया अनुशी

"मेरी पोटली
कहानी का,
यह तीसरा अंश है,
कृपया अनुशीर्षक
 में कहानी पढ़ें" सुप्रभात,,,
यह कहानी का तीसरा भाग है पहला एवं दूसरा भाग पढ़ने के लिए #मेरी_पोटली_कहानी  पर जाएं।
प्रतिक्रिया अवश्य दें।

पोटली के बारे में जब पंचायत में चर्चा हो रही होती है,
बुढ़िया बार-बार अपने पोटली का सोच भावुक हो उठती थी। 
वो मन ही मन पंचों से कह रही थी कि इतनी यदि मेरी पोटली इतनी ज़रूरी और बेशकीमती ना होती तो क्या मैं यहाॅं पंचायत बुलाती? अगर वह पोटली सच में केवल रुपयों के लिए मैं खोज रही होती तो क्या सच में मैंने केवल इतने से रुपयों के लिए सारा गाॅंव इकट्ठा किया होता?
बुढ़िया ने पंचों की बातों को अनसुना करते हुए, सरपंच से कहा सरपंच जी रुपया-पैसा तो मेरे पास नहीं है जो मैं आपको दे दूॅं , जिससे आप जल्दी से जल्दी मेरी पोटली ढूॅंढें, केवल एक पोटली थी जो उम्रभर मैंने संभालकर रखी थी।
"मेरी पोटली
कहानी का,
यह तीसरा अंश है,
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 में कहानी पढ़ें" सुप्रभात,,,
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पोटली के बारे में जब पंचायत में चर्चा हो रही होती है,
बुढ़िया बार-बार अपने पोटली का सोच भावुक हो उठती थी। 
वो मन ही मन पंचों से कह रही थी कि इतनी यदि मेरी पोटली इतनी ज़रूरी और बेशकीमती ना होती तो क्या मैं यहाॅं पंचायत बुलाती? अगर वह पोटली सच में केवल रुपयों के लिए मैं खोज रही होती तो क्या सच में मैंने केवल इतने से रुपयों के लिए सारा गाॅंव इकट्ठा किया होता?
बुढ़िया ने पंचों की बातों को अनसुना करते हुए, सरपंच से कहा सरपंच जी रुपया-पैसा तो मेरे पास नहीं है जो मैं आपको दे दूॅं , जिससे आप जल्दी से जल्दी मेरी पोटली ढूॅंढें, केवल एक पोटली थी जो उम्रभर मैंने संभालकर रखी थी।