एक तड़प सी थी इश्क़ में निशानी हो जाने को जैसे इबादत समझ बैठा इश्क़ में रूहानी हो जाने को, वो वली हो सकता था किस्सो में इबादत लिख कर पर इमारत खड़ी कर गया इश्क़ में कहॉनी हो जाने को, ताज महल