Natural Morning खुरच दूँ इन यादों को दिल से,अगर कोई औजार मिले तब कहीँ इस दिल को मेरे ,शायद कुछ करार मिले मिटने लगी हैं अब तो इन हाथों की लकीरें भी अब तो अपनी मर्ज़ी से जीने का इख्तियार मिले राहों में घेर लेते हैं लम्हे गुजिश्ता रातों के कब तक पनाह ढूंढे कोई ,कहाँ तक फरार मिले कुछ देना है तो दो हमें मंजिल का कुछ सुराग क्यूँ हमें इन राहों का गुबार ही हर बार मिले बेहद पुरइत्मीनान थीं उसकी रिफाकतें अगर फिर क्यूँ खुशी के बदले में ग़म ही बेशुमार मिले अनु "इंदु" हसरतें .....यादें अनु मित्तल इंदु