इस करुणा कलित हृदय में ना जाने भरा दुःख कितना है कोई समझ न पाए बातें कि कैसी बितती है काली रातें। ठोकर मिलता है सफर में ना जाने कितना घुट कर रह जाता आदमी पी जाता लेकर चला था जो सपना। दिल में जख्म भरे है कितने कोई समझ न पाता है आंसू बनकर धरा पे जख्म का पानी बह जाता है। सांस चलती है जब तक वो फर्ज अपना निभाता है सांस के छूटते ही सारा दर्द खतम हो जाता है। दर्द भरा है बहुत इस दर्द भरे जगत में आंसू बनकर बह जाता है आँसू इस विश्व-सदन में। कवि - जयशंकर प्रसाद शीर्षक - आंसू #rzहिंदीकाव्यसम्मेलन #restzone #rzछायावाद