एक सुझाव दुविधा है, अक्सर होती है मन कुछ कहता बुद्धि कुछ और कहती है मन बुद्धि का ये संघर्ष आदिम संघर्ष है क्या इसमें पिसना नियति है? ये *कु* और *सु* का संघर्ष है प्रतिदिन प्रतिपल का महाभारत है इस संघर्ष से मुक्ति पाना ही मनुष्य का दायित्व है । अंतरसंघर्ष से मुक्त होने को आत्मदर्शन करते हुए हम क्षण क्षण परिवर्तित होते मन का दर्शन करते जायेंगे अन्तर्मन में स्वत:परिवर्तन पाएंगे क्रोध,अहंकार, तृष्णाएँ और वासनाएं इन सब पे नियंत्रण कर पाएंगे।। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 दुविधा है, अक्सर होती है मन कुछ कहता बुद्धि कुछ और कहती है मन बुद्धि का ये संघर्ष आदिम संघर्ष है क्या इसमें पिसना नियति है? ये *कु* और *सु* का संघर्ष है प्रतिदिन प्रतिपल का महाभारत है