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प्रिय अनकहे लफ्ज़, तुम ह्रदय मे कुछ इस तरह आते हो

प्रिय अनकहे लफ्ज़,

तुम ह्रदय मे कुछ इस तरह आते हो
जैसे , बिन मौसम बरसात
तुम्हारे अहसास मे
ना तो पूरी तरह भीग ही सकते है
और ना ही खुद को संभाल ही पाते है |

मन और दिमाग़ के बीच मे
कुछ अजब खेल ही हो तुम
क्या सही, क्या गलत 
ना समझ ही पाते है
ना ही  कह पाते है |

मन मे यूँ कैद रहते हो
तो सितम बहुत बहुत ढाते हो
जो बोल दे तो रुला भी देते हो
आकर, आसानी से जाते भी तो नही
द्वन्द, बनाये रखते हो |

©Aakanksha Tyagi
  #AakankshaTyagispeaks©

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