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एक डर है, मेरे अंदर जो मुझ में सफर करती है वह दि

एक डर है, मेरे अंदर 
जो मुझ में सफर करती है
 वह दिखती नहीं मेरे चेहरे पर 
पर हर वक्त मुझ में सफर करती है 
यकीनन यह डर नहीं है,... जानती हूं
यह एक ख्वाब है, 
और ख्वाब बनकर टूट जाती है 
कुछ किस्मत छीन लेती है, हाथों से 
और ,कुछ सपने टूट जाते हैं
 कभी डरा देती है ये जमाने की धमकियां
 और कुछ अपने तोड़ देते है
 बस यही एक मंजर देख कर मैं सबको छोड़ देती हूं 
डरती हूं, मैं कतरा के चलती हूं 
ख्वाबों से भरी इन नजरों को मैं झुका कर चलती हूं,
सुनकर कोई मजाक ना बनाएं,
इसी डर से डरती हूं
 और अब थक गई हूं,
 इस जमाने के साथ चलते चलते
 अब मैं अकेले सफर पर निकला करती हूं!!!

©shiva......
  #मेरीकलमसे  Anshu writer Anupriya Satyajeet Roy शीतल चौधरी दुर्लभ "दर्शन"