स्वप्न धरा में बोये तुमने बीज ये कैसे विषैले। पुलक बोई वह माटी विषदंत को कैसे झेले। (१) बाँझ सी ज़िंदगी में देखो नवांकुर तो फूटे। तुम फिर से बातों बातों में हमसे क्यों रूठे । (२) साथ रहो , न रहो , ज़िन्दगी तो कट ही जायेगी, मेरे हिस्से ज़ख्म घने है , ज़िन्दगी ही सहलायेगी। (३) आती रही है अपने हिस्से बदनसीबी की झोली , तुम मनाओ रोज दिवाली , और मनाओ होली । (४) ज़िन्दगी बहुत टेड़ी है , न समझो सीधी भोली, पैदा होते ही मैंने तो धुप में ये आँखे खोली। (५) फ़लसफा #ज़िन्दगी #विषदंत #पुलक #रूठना #स्वप्न #धरा #बीज #जख़्म #सहलाना #टेड़ी #सीधी #आँख #धुप #मिट्टी #दिवाली #होली #झोली #हिस्से #nojoto #nojotohindi #hindinojoto #hindi