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धर्म क्या हैं...!!! धर्म क्या हैं...!!! जैसे ही ए

धर्म क्या हैं...!!! धर्म क्या हैं...!!!

जैसे ही एक मनुष्य पृथ्वी पर जन्म लेता हैं, उसका धर्म उसके जन्म प्रमाण पत्र पर अंकित हो जाता हैं। लोग कहते हैं, हम धर्म, जात पात मे विश्वास नही रखते, हम इंसानियत को ही धर्म मानते हैं। मगर यह भूल जाते हैं, इंसानियत क्या होती हैं, यह भी धर्म ही सिखाता हैं।
अगर आम भाषा मे बात करे तो धर्म एक वस्त्र के समान ही होता हैं। जिसे आपने जब तक धारण कर रखा हैं, तब तक वह आपकी सुरक्षा कर रहा हैं, हर प्रकार की नीयत से, मौसम से और वातावरण से , साथ ही साथ आपको एक पहचान भी देता हैं। और जैसे ही आपने उसे त्यागा, आप दुनिया की नजर मे आ जाओगे। अब बात आती हैं आपने उसे त्यागा किस रूप मे हैं, अगर आपने मानव सेवा के लिये उसे त्यागा तो यह धर्म ही आपको एक ऊचे दर्जे पर बिठा देगा, और अगर आपने इसे सिर्फ दिखावे और इंसानियत का नाटक और ढोंग करने के लिये त्यागा, तो यह आपको ही इन्सान नही रहने देगा।
धर्म ने कभी किसी को बांटा नही हैं। ना ही किसी को कभी खुद से छोटा दिखाया हैं। धर्म ने सिर्फ ईश्वर को एक बताया हैं। हां यह बात और हैं की, उसके रूप बहुत बताये हैं। पर वह भी सही तो हैं। क्योंकि शक्ती तो एक ही हैं, पर भिन्न भिन्न रूपों मे विभाजित हैं। वो कहते हैं ना "energy can neither be created nor be destroyed , only it can change from one form to another." तो इसी अनुसार यह तो सही हैं, की शक्ती एक हैं, पर उसके रूप अनेक।
इसी प्रकार हर धर्म का अपना एक सिद्धान्त हैं, अपना एक नियम हैं, जो उस धर्म के लोगो को उस धर्म से उसे जुड़ी आस्थाओ से जोड़ता हैं। धर्म ने सिर्फ कर्म करना सिखाया हैं, और उस कर्म से प्राणिमात्र की सेवा करने को ही धर्म की असल सत्ता बताया हैं। जिसे कुछ लोग इंसानियत भी कहते हैं। मगर भूल जाते हैं, अगर धर्म नही होता तो शायद वो भी नही होते, ना ही इंसानियत होती ना ही कुछ और।
धर्म को बांटा लोगो ने, गुरुओ ने अपने लिये। पर अगर देखा जाये तो हर धर्म का नाम ही उसमे छुपे उसके उद्देश्य को साफ़ दिखाता हैं।
जैसे
धर्म क्या हैं...!!! धर्म क्या हैं...!!!

जैसे ही एक मनुष्य पृथ्वी पर जन्म लेता हैं, उसका धर्म उसके जन्म प्रमाण पत्र पर अंकित हो जाता हैं। लोग कहते हैं, हम धर्म, जात पात मे विश्वास नही रखते, हम इंसानियत को ही धर्म मानते हैं। मगर यह भूल जाते हैं, इंसानियत क्या होती हैं, यह भी धर्म ही सिखाता हैं।
अगर आम भाषा मे बात करे तो धर्म एक वस्त्र के समान ही होता हैं। जिसे आपने जब तक धारण कर रखा हैं, तब तक वह आपकी सुरक्षा कर रहा हैं, हर प्रकार की नीयत से, मौसम से और वातावरण से , साथ ही साथ आपको एक पहचान भी देता हैं। और जैसे ही आपने उसे त्यागा, आप दुनिया की नजर मे आ जाओगे। अब बात आती हैं आपने उसे त्यागा किस रूप मे हैं, अगर आपने मानव सेवा के लिये उसे त्यागा तो यह धर्म ही आपको एक ऊचे दर्जे पर बिठा देगा, और अगर आपने इसे सिर्फ दिखावे और इंसानियत का नाटक और ढोंग करने के लिये त्यागा, तो यह आपको ही इन्सान नही रहने देगा।
धर्म ने कभी किसी को बांटा नही हैं। ना ही किसी को कभी खुद से छोटा दिखाया हैं। धर्म ने सिर्फ ईश्वर को एक बताया हैं। हां यह बात और हैं की, उसके रूप बहुत बताये हैं। पर वह भी सही तो हैं। क्योंकि शक्ती तो एक ही हैं, पर भिन्न भिन्न रूपों मे विभाजित हैं। वो कहते हैं ना "energy can neither be created nor be destroyed , only it can change from one form to another." तो इसी अनुसार यह तो सही हैं, की शक्ती एक हैं, पर उसके रूप अनेक।
इसी प्रकार हर धर्म का अपना एक सिद्धान्त हैं, अपना एक नियम हैं, जो उस धर्म के लोगो को उस धर्म से उसे जुड़ी आस्थाओ से जोड़ता हैं। धर्म ने सिर्फ कर्म करना सिखाया हैं, और उस कर्म से प्राणिमात्र की सेवा करने को ही धर्म की असल सत्ता बताया हैं। जिसे कुछ लोग इंसानियत भी कहते हैं। मगर भूल जाते हैं, अगर धर्म नही होता तो शायद वो भी नही होते, ना ही इंसानियत होती ना ही कुछ और।
धर्म को बांटा लोगो ने, गुरुओ ने अपने लिये। पर अगर देखा जाये तो हर धर्म का नाम ही उसमे छुपे उसके उद्देश्य को साफ़ दिखाता हैं।
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