अंतर्मुख हो उड़ो,सुधा रस पिओ,जुड़ाओ प्राण को, पिंजरा तोड़ कभी मत भागो मिटने दो अज्ञान को, हृदय खोल आभार करो ज्योतिर्मय छबि निहारो, कृपा वृष्टि हो रही निरंतर ग्रहण करो अनुदान को, हार मिलेगी किंतु बढ़ो तुम कभी हार ना मानो, मन की चंचलता को त्यागो समझाओ नादान को, कर दे जो अक्ष्क्षुण धरोहर ऐसा अलख जगाओ, संततियों को करो सुसंस्कृत पढ़ लो वेद-पुराण को, कैसे हो संतुष्ट हृदय ! मन विविध भेद बतलाये, असल भेद सद्गुरु बतावें अपना लो तुम ज्ञान को, इस दुनिया की दौलत से संतुष्टि मिली है किसको? क्षमा,दया,समता,समदृष्टि,अपना लो मुस्कान को, मानव का उत्थान करो हो सबल सकल मानवता, जाति,धर्म,भाषा से मत तुम अलग करो इंसान को, है अनमोल कृपा इस जग में साँसों का आना जाना, जीते जी अनुभूति करो तुम शांति और निर्वाण को, ----शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' ©Shashi Bhushan Mishra #मिटने दो अज्ञान को#