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चुभते हैं वो लम्हे, वो पल आज भी, जो कभी थे जुड़े त

चुभते हैं वो लम्हे, वो पल आज भी, जो कभी थे जुड़े तुमसे,

दिल के ज़ख्मों को कुरेद जाते हैं अक्सर वो ख़्वाब अधूरे से,

नसीब का खेल समझ कर, स्वीकार कर लिया था सब कुछ,

फिर क्यों नहीं निकल पा रही ज़िंदगी यादों के घने कोहरे से,

©Mili Saha
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