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टूटा हूँ, थोड़ा वक्त चाहिए, थोड़ा ख़ुदको समेटने के लि

टूटा हूँ,
थोड़ा वक्त चाहिए,
थोड़ा ख़ुदको समेटने के लिए।
एक पुराने अंजाम को
एक नया आगाज़ देने के लिए।।

बहत दर्द झेले हैं,
सबको अपना बनाने में।
हमेशा तन्हा रह गए,
दूसरों की महफ़िल सजाने में।।

इस अपनेपन के खेल से,
अब दूर जाना है।
कोई साथ नहीं देता यहाँ,
कहने को तो सारा ज़माना है।।

दर्द बाँटने के ख्वाहिश में
बिखर गए हम,
बिखरा जीवन का ताना-बाना
और ठिठुर गए हम।

मुकद्दर भी रूठा है शायद,
थोड़ी सिफारिश है करना।
पर कोई नहीं सिफारिश करने वाला,
अब ख़ुदसे ही ख़ुदको है आज़माना।।

दिल टूट के बिखरा है,
थोड़ा उसको समेट लूँ।
कोई नहीं है अपना मेरा,
थोड़ा संभल जाऊं, फिर आगे बढ़ूँ।।

तन्हा रह लिया बहुत अब एकांत चाहिए,
अल्पविराम नहीं, पूर्ण विराम चाहिए।
सारे गीले शिकवे ख़तम,
सब कहा सुना माफ़,
ज़िन्दगी मिलती है जहाँ मौत के आगोश में,
हाँ, ऐसी ही शांति,
ऐसा ही सुकून चाहिए।।
हाँ, ऐसा ही सुकून चाहिए।।
#Stopped

©Ajayy Kumar Mahato टूटा हूँ,
थोड़ा #वक्त चाहिए,
थोड़ा ख़ुदको समेटने के लिए।
एक पुराने अंजाम को
एक नया आगाज़ देने के लिए।।

बहत दर्द झेले हैं,
सबको अपना बनाने में।
टूटा हूँ,
थोड़ा वक्त चाहिए,
थोड़ा ख़ुदको समेटने के लिए।
एक पुराने अंजाम को
एक नया आगाज़ देने के लिए।।

बहत दर्द झेले हैं,
सबको अपना बनाने में।
हमेशा तन्हा रह गए,
दूसरों की महफ़िल सजाने में।।

इस अपनेपन के खेल से,
अब दूर जाना है।
कोई साथ नहीं देता यहाँ,
कहने को तो सारा ज़माना है।।

दर्द बाँटने के ख्वाहिश में
बिखर गए हम,
बिखरा जीवन का ताना-बाना
और ठिठुर गए हम।

मुकद्दर भी रूठा है शायद,
थोड़ी सिफारिश है करना।
पर कोई नहीं सिफारिश करने वाला,
अब ख़ुदसे ही ख़ुदको है आज़माना।।

दिल टूट के बिखरा है,
थोड़ा उसको समेट लूँ।
कोई नहीं है अपना मेरा,
थोड़ा संभल जाऊं, फिर आगे बढ़ूँ।।

तन्हा रह लिया बहुत अब एकांत चाहिए,
अल्पविराम नहीं, पूर्ण विराम चाहिए।
सारे गीले शिकवे ख़तम,
सब कहा सुना माफ़,
ज़िन्दगी मिलती है जहाँ मौत के आगोश में,
हाँ, ऐसी ही शांति,
ऐसा ही सुकून चाहिए।।
हाँ, ऐसा ही सुकून चाहिए।।
#Stopped

©Ajayy Kumar Mahato टूटा हूँ,
थोड़ा #वक्त चाहिए,
थोड़ा ख़ुदको समेटने के लिए।
एक पुराने अंजाम को
एक नया आगाज़ देने के लिए।।

बहत दर्द झेले हैं,
सबको अपना बनाने में।