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तुम स्वादिष्ट पेय हो। सबको प्रिय हो। तेरे बिना जीन

तुम स्वादिष्ट पेय हो।
सबको प्रिय हो।
तेरे बिना जीना नामुमकिन है।
पर ऐ चाय, तु मेरी कमजोरी नही है।

तुम स्वादिष्ट पेय हो
सबको प्रिय हो।
तेरे बिना जीना नामुमकिन है।
माना कि तु मेरी कमजोरी नही है,

 पर तेरी मुझे अब तो आदत लग गई है।
चाहे पीती हुं मैं चाय बहुत फिकी,
फिर भी तु मेरी‌ जरुरत बन गई है।
कभी सोचती हुं, तुझे मैं छोड़ दु।

तुझसे मुंह मोड़ लु, संयम से खुद को जोड़ दु।
मगर यह भी, मेरे लिए नामुमकिन है,
ऐ चाय तुझसे दूरी, मुझे प्यारी नही है।
तुम स्वादिष्ट पेय हो......

नही पी है चाय मैंने सुबह से, 
फिर भी मैंने दो रचनाएं लिख दी।
बाहर की चाय पीने पर भी, 
मन ने मुझ पर बंदिशे रख दी।

बहुत सुस्ता रही हुं।
बहुत उक्ता रही हुं।
पल बिता रही हुं।
खुद को सता रही हुं।

बस तेरी सुरभी से सुस्ती उड़ना नामुमकिन है।
ऐ चाय, तेरी यह दूरी, दिमाग को बुरी लग रही है।
तेरे बिना दिनचर्या मेरी अधुरी लग रही है।
तुम स्वादिष्ट पेय हो।

सबको प्रिय हो, तेरे बिना जीना नामुमकिन है।
ऐ चाय, तेरे बिना अब कमजोरी लग रही है।
तुम अनिवार्य हो।
आवकार्य हो, तेरे बिना जीना नामुमकिन है।

ऐ चाय, तेरे बिना अब कमजोरी लग रही है।
मुसीबत टल जाए इंधन की, ईश्वर से अर्जी यही है।

          🙏🙏🙏🙏

बाहर की चाय पीना, 
आज मैंने बड़े ही यत्नो से टाला।

मगर चाय पिए बिना, 
डरती हुं कही पड़ ना जाए सर दर्द से पाला।

देखकर दिये की ज्योति, सुझी मुझे युक्ती, 
चाय उस पर बना ली, पीकर पाई स्फुर्ती।

नही छोड़ पाउंगी कभी तुझे इस बात का यकीन है।
ऐ चाय, तुझसे दूरी मुझे प्यारी नही है।

तुम स्वादिष्ट पेय हो।
सबको प्रिय हो।
तेरे बिना जीना नामुमकिन है।

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©Shivkumar
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