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आज खोला जो सन्दूक ,बिखरी धुँधली यादों का, एक खत

 आज खोला जो सन्दूक ,बिखरी धुँधली यादों का,
एक  खत लिपटा था उसमें ,तेरे अधूरे  वादों का,

धुँधलाए थे अल्फ़ाज़ उसके,मिट गई स्याही थी,
फ़िर भी कई रँग लिए , तेरी याद चली आई थी,

झाड़  पोछ  कर  खोला जो ,यादों के पिटारे को,
नही  रोक  पाए  हम ,अश्कों के बहते  धारो को,

कुछ  हिस्सा  उस  खत का , आज भी कोरा था,
लिख दूँ कुछ इसमें नए किस्से ,मैंने क़लम को झकझोरा था ।


-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #यादों_की_कलम_से