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जीवन में शक्ति का आदान-प्रदान निरन्तर क्रम के रूप

जीवन में शक्ति का आदान-प्रदान
निरन्तर क्रम के रूप में चलता रहता है।
एक से दूसरे का और दूसरे से तीसरे का निर्माण होता है।
सृष्टि के इस क्रम को हम अपने ही शरीर में देख सकते हैं।
एक कहावत है- “जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन।” :
हम जो भोजन करते हैं उससे हमारा शरीर बनता है। इसको आधुनिक चिकित्सा शास्त्र भी मानता है। भारतीय ज्ञान इससे भी ऊपर है। भोजन के साथ भाव का भी महत्व है, क्योंकि इससे खाने वाले का मन तुष्ट होता है। भोजन किस भावना के साथ बनाया गया, किस भाव और दुलार के साथ खिलाया गया, किस वातावरण और मनोभाव से भोजन ग्रहण किया गया, आदि बातों का सीधा प्रभाव मन पर पड़ता है।
:
भारतीय संस्कृति में हर खुशी की पहली अभिव्यक्ति भोजन ही है। जन्म, विवाह आदि से लेकर जीवन की हर खुशी पर खाना, दावत, पार्टी से आगे कोई अन्य अपेक्षा क्य
जीवन में शक्ति का आदान-प्रदान
निरन्तर क्रम के रूप में चलता रहता है।
एक से दूसरे का और दूसरे से तीसरे का निर्माण होता है।
सृष्टि के इस क्रम को हम अपने ही शरीर में देख सकते हैं।
एक कहावत है- “जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन।” :
हम जो भोजन करते हैं उससे हमारा शरीर बनता है। इसको आधुनिक चिकित्सा शास्त्र भी मानता है। भारतीय ज्ञान इससे भी ऊपर है। भोजन के साथ भाव का भी महत्व है, क्योंकि इससे खाने वाले का मन तुष्ट होता है। भोजन किस भावना के साथ बनाया गया, किस भाव और दुलार के साथ खिलाया गया, किस वातावरण और मनोभाव से भोजन ग्रहण किया गया, आदि बातों का सीधा प्रभाव मन पर पड़ता है।
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भारतीय संस्कृति में हर खुशी की पहली अभिव्यक्ति भोजन ही है। जन्म, विवाह आदि से लेकर जीवन की हर खुशी पर खाना, दावत, पार्टी से आगे कोई अन्य अपेक्षा क्य