अकड़। जो है, तेरे सीने में ना उसे कस के पकड़।। मेहनत ,बहुत करनी पड़ती है आगे बढ़ने के लिए देखना, कोई कांटा जाए ना तेरे सीने में जकड़। ऐसी, रखना ना तू अपने अंदर अकड़।। खामोशी, के साथ अपने अंदर की गहराई में जा। सुकून ,मिलेगा तुझे पहले अपनी मंजिल को पा।। जो, आजकल मुझसे कतराते हो ना। उनका, शुक्रिया अदा जरूर करना, काबिल हो गया हूं, क्यों हमारे बारे में अब बताते हो ना। हंसी ,आती है ऐसे लोगों पर। अपने ,तो कुछ करना पाते , कहते तू ही कर।। समय ,आ गया है अरे ओ मुसाफिर। खोल, दे तू भी इस जमाने के सामने अपने पर।। उड़ जा ,एक लंबी उड़ान लगाने को। छोड़ दे, इन्हें इन डालियों पर छलांग लगाने को।। चल ,चलते हैं उड़ान लगाने को। "खामोश अकड़" ©Abhishek tripathi#chgr@c #chgr#@:c: #chgr#@:c: