आखों ने कभी वो मंजर नहीं देखा दिल की कश्ती ने कभी समंदर नहीं देखा हादसो के शहर में हुई है परवरिश ,रात दिन चुपके से मेरी पीठ पर जो लगा,वो खंजर नहीं देखा Khanjar