जो छुपाकर अपने घाव को दफनाते अंदर सब आह को पूर्ण तो नहीं कह सकते तुमको पर पुरुष तुम तो पूरक हो. जो कहते नहीं कभी मुख से कराहते अंदर ही अंदर दुःख से कैसे छिपाते हो ये किसी से क्या कह पाते हो कभी खुद से ? दर्द तुम्हे भी होता है कष्ट तुझे भी घेरता है पर जताते नहीं तुम कह के ऐसे कैसे रह जाते यूँ रह के . है कहने का हक तुमको भी क्यों ज़ाहिर नहीं करते कभी दबा जाते जो अपनी मर्ज़ी क्या कहने कि इज़ाज़त नहीं? तेरे भीतरी भाव के गर्भ को कोई कैसे समझें इस मर्म को अरे..! तुम भी तो मनुष्य ही हो तो कहते क्यों नहीं दर्द होता है मर्द हो. ©Deepali Singh #International men's day