"ना कोई चिंता थी ना कोई फिक्र,
थी बस अपनी ही मस्ती अपनी ही डगर,
बेपरवाह से दिन जाया करते थे गुज़र,
थक-हारकर खेलकूद से सोते थे बेफिक्र,
बुना करते थे बस अपने सपनों का ही घर,
माँ के आँचल में छिपते थे लगता था जब डर,
अब तो बस यादें हैं और याद आते ही मचल जाता है मन,
कि काश, लौटकर आ जाए फिर मेरा बचपन!!" #Poetry#poetrycommunity#shayaristatus#poetryshayari#AnjaliSinghal