ख़ुदा ने कराया मिलन खुद सही है युं ही तो फ़क़त राब्ता ये नही है शहर भर सहर का बसेरा हुआ है मिरे गाँव में फिर उजाला नही है नही वो मुहब्बत बयाँ हो जो लब से सुनो भी कभी जो ज़ुबाँ अनकही है मुसलसल जलाया मुझे धूप ने है तपे आग में जो कि सोना वही है देखो छोड़ अमृत हलाहल पिया है स्वामी जगत के सदा शिव वही है ग़ज़ल आज तुमसे फकीरा कहेगा क़हर चीखती ख़ामुशी एक यही है एक ग़ज़ल पेश है बह्र - 122 122 122 122 #राब्ता - relation #हलाहल - poison #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan