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पुश्तैनी घर जब टूट रहा था घर पुश्तैनी वो मा

      पुश्तैनी घर 
जब टूट रहा था घर पुश्तैनी वो माँ पापा 
बैठे थे जमीं पर वहीं जब टूट रहीं थी 

कच्ची दीवारें तब मिट रही थी बुजुर्गो 
की निशानी उनकी,बदल रहा था घर 
का नक्शा जा रही थी सोच आधुनिकता
की ओर बेबस थे वो अल्फाज़ में संतान 

से कुछ कह न पाये लाचारी थी ऐसी कि
रहना उनको संतान के संग ही था,मिट 
रही थी धरोहर पिता की घर से जुड़ी

यादों का सफ़र जहाँ से उनका शुरू हुआ,
वहीं माँ का उस पुराने घर में ब्याह कर आना,
बदल रहा था घर छोटे से बड़े की ओर बदल
रहा था घर उनका ग्रामीणता से आधुनिकता 
की ओर।
     होली के हमजोली-14
#collabwithकोराकाग़ज 
#कोराकागज़ 
#होली2021
#kkhkh2021
#होलीकेहमजोली
#विशेषप्रतियोगिता
#tarunasharma0004
      पुश्तैनी घर 
जब टूट रहा था घर पुश्तैनी वो माँ पापा 
बैठे थे जमीं पर वहीं जब टूट रहीं थी 

कच्ची दीवारें तब मिट रही थी बुजुर्गो 
की निशानी उनकी,बदल रहा था घर 
का नक्शा जा रही थी सोच आधुनिकता
की ओर बेबस थे वो अल्फाज़ में संतान 

से कुछ कह न पाये लाचारी थी ऐसी कि
रहना उनको संतान के संग ही था,मिट 
रही थी धरोहर पिता की घर से जुड़ी

यादों का सफ़र जहाँ से उनका शुरू हुआ,
वहीं माँ का उस पुराने घर में ब्याह कर आना,
बदल रहा था घर छोटे से बड़े की ओर बदल
रहा था घर उनका ग्रामीणता से आधुनिकता 
की ओर।
     होली के हमजोली-14
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