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जाके आशा स्वामी की।और क्यों चित समाय।।

जाके आशा स्वामी की।और क्यों चित समाय।। 
                                          पर पुरूषों की आश से।वैश्या बांझ रहाय।। 1
मुँह से स्वामी को चहे।मन माया की आश।।
                                          ऐसे ओछे जीव का। कौन करे विश्वास।।2।।
स्वामी का दर्शन चहे।संग चाहे सामान।।    
                                          कैसे स्वामी दर्श दे।क्या वे हैं अनजान।।3।।
झूँठी जग आशा धरे।तन ना थिर रह पाय।।     
                                          इस जग का यह नियम है।जो आवे सो जाय।।4।।
संग लाता दीखे नहीं।ना कोई संग ले जाय।।।    
                                          परारब्ध संग में रहे।वो लावे ले जाय।।5।।
नश्वर जग आशा तजे।स्वामी आशा लाय।।।   
                                          निश्चित स्वामी मिलेगा।को रोकेगा ताय।।6।।
अन्तर आशा दबी रहे।ऊपर परदा डार।।   
                                          नहीं काल से बच सके।गर्दन देगा मार।।7।।
बचा जो चाहे काल से।करे स्वामी आधार।।।    
                                          बाहर सतगुरू संग दे।अंतर शब्द की धार।।8।।
लगे आश सतदेश की।मर मण्डल क्यों आय।।    
                                          सतगुरु दया स्वामी मेहर।सत्तदेश को जाय।।9।।
वहां जाय विश्राम करे।अपने प्रीतम महल।।    
                                          सुरत जाय स्वामी वरे।करे रैन दिन टहल।।10।।
एक आश विश्वास रख।राधास्वामी द्याल को पाय।    
                                          जब दूजा कोई ना दिखे।उस ही माँय समाय।।11।।
राधास्वामी जी
राधास्वामी छन्द-बन्द जहां आशा वहाँ बासा ।
जाके आशा स्वामी की।और क्यों चित समाय।। 
                                          पर पुरूषों की आश से।वैश्या बांझ रहाय।। 1
मुँह से स्वामी को चहे।मन माया की आश।।
                                          ऐसे ओछे जीव का। कौन करे विश्वास।।2।।
स्वामी का दर्शन चहे।संग चाहे सामान।।    
                                          कैसे स्वामी दर्श दे।क्या वे हैं अनजान।।3।।
झूँठी जग आशा धरे।तन ना थिर रह पाय।।     
                                          इस जग का यह नियम है।जो आवे सो जाय।।4।।
संग लाता दीखे नहीं।ना कोई संग ले जाय।।।    
                                          परारब्ध संग में रहे।वो लावे ले जाय।।5।।
नश्वर जग आशा तजे।स्वामी आशा लाय।।।   
                                          निश्चित स्वामी मिलेगा।को रोकेगा ताय।।6।।
अन्तर आशा दबी रहे।ऊपर परदा डार।।   
                                          नहीं काल से बच सके।गर्दन देगा मार।।7।।
बचा जो चाहे काल से।करे स्वामी आधार।।।    
                                          बाहर सतगुरू संग दे।अंतर शब्द की धार।।8।।
लगे आश सतदेश की।मर मण्डल क्यों आय।।    
                                          सतगुरु दया स्वामी मेहर।सत्तदेश को जाय।।9।।
वहां जाय विश्राम करे।अपने प्रीतम महल।।    
                                          सुरत जाय स्वामी वरे।करे रैन दिन टहल।।10।।
एक आश विश्वास रख।राधास्वामी द्याल को पाय।    
                                          जब दूजा कोई ना दिखे।उस ही माँय समाय।।11।।
राधास्वामी जी
राधास्वामी छन्द-बन्द जहां आशा वहाँ बासा ।
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