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sunset nature जननी बिटिया में विवाद बना जग झूठा स

sunset nature जननी बिटिया में विवाद बना
 जग झूठा सुता दुख देता
 घना नहिं सत्य का मातु वितान 
तने जग प्रेम दे कीर्ति सुपर्व मने 
जिस सांचे में ढाल रही न ढली मिथिला की लली,
 मिथिला की लली ॥1॥
जन्मी सच को अजमाने चली हल फाल की नोंक खिंची 
जो नली नृप पाई सुता 
शुभ ज्योति जली वह जानकी या सिय कुंद कली 
वह भक्ति भरी मिश्री की डली मिथिला की लली, 
मिथिला की लली ॥2॥
श्रीराम गले वरमाल हुई 
वनवास में भी खुशहाल हुई
 दसशीश हरी न निढाल हुई 
प्रभु राम में डूब निहाल हुई 
अपने पथ से नहिं नेक टली मिथिला की लली,
 मिथिला की लली ॥3॥
:-Unknown

©Adhïťãjīvăn kï
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