त्रिशला के नंदन के चरणों में प्यार भरा वंदन है मेरा, 14 सपन देखे त्रिशला मईया ने जब जन्म हुआ तेरा, कुंडलपुर नगरी में जन्म हुआ तीर्थकरो में पूरी दुनिया ने जपा नाम तेरा, प्रभु तुम दयालुता और सहनशीलता के प्रतीकाष्ठा की तुम मूरत हो, आज के वर्तमान को वर्धमान की तुम जरूरत हो, इस दुनिया से हिंसा, पाप, सुधर्म, को मिटाना था प्रभु इसलिए तुम्हें धरती पर आना था, इस राजा और रंक के बीच का भेद मिटाना था और इसलिए प्रभु को सब छोड़कर जंगल में जाना था, कही लड़ते राजा राज पाठ के लिए, कहते वो की हिंसा पाप से राज जीते जाते है , और एक तरफ प्रभु हमरे जिन्होंने राज कुल में जन्म लिया राज पाठ को ठुकराया था, प्राणियों के कल्याण के लिए वैराग्य को अपना जीवन बनाया था, प्रभु ने जैन धर्म के गौरव को बढ़ाया था , दिगम्बर रूपी नग्न अवस्था को अपनाया था, संसार ने भी देखा था कैसे बटक रहे तीर्थकर खुद तीरथ की तलाश में कहा खो गए वो आज के अंधकार में, घनघोर जंगल था बहुत मगर ना डग- मंगाए उद्धार, फिर प्रभु ने दिया ये सात सूत्र का धार :- अन्हिंसा, सत्य, अचौर्य,ब्रहाचर्य, अपरिग्रह, तप, संयम, और ज्ञान, करलो जीवन में प्रभु के पद चिन्हों को उत्तार , जभी होगा तुम्हरा आत्म कल्याण । Happy Mahavir jayanti Jai Jinendra