तेरे प्रेम में कई रोज़ निर्जल रह जाता हूं मैं , फिर भी ये मेरे नैनों में बादल बनने भर का पानी जाने कहां से आता रहता है... ये नैना मोरे मेह बनाये ये नैना मोरे मेह बरसायें... तेरे आरोही इश्क़ में तेरे अक्षय प्रेम में ये नैना मोरे मेह बरसायें... ( या मौला !! ये कैसी इश्क़ की आरोही फ़ितरत, ये प्रेम कैसी अक्षय पूँजी !! ) आरोही = In an increasing order अक्षय = Which never ends/finish निर्जल = Without drinking water मेह = Clouds फ़ितरत = Nature/Habit पूँजी = treasure Thanks Arpita jee for tagging me to collaborate and pondering my thoughts with you...sorry for being late as this was aksed during my absence...hope this justifies the wonderful unique thoughtful sketch from you...