प्रेम और वसन्त जीवन है ऋतु सम , कभी पतझड़ है तो कभी वसंत है। पतझड़ तब तब है आता । जब मन बहुत घबराता है। जब होते हैं हर्षित तन मन प्राण, वही बसंत बन जाता है। प्रेम आया है वसुधा में जब भी