एक कहानी.... कौन सा धर्म.. कहा है न्याय? #कलियुग का धर्म# #इंसाफ का हकदार कौन है?# * एक छोटी से गांव से गुजरता हुआ हर रोज़ एक ही रेलगाड़ी जाती थी। उस रास्ते में तीन लाइन के पटरी थे। उनमें से एक लाइन खराब थी तो एक लाइनमैन वहा काम करता था। हर रोज़ कुछ बच्चे स्टेशन के पास पटरी पे खेलने आ जाते थे। स्टेशन मास्टर उन्हें बहुत समझाते की वहा खेलने न आया करे, बच्चे फिर भी न जाए तो गाड़ी चले जाने तक उन्हें रोकते फिर खेलने को इजाज़त देते थे। बच्चों को भी रेलगाड़ी आने का समय पता था। एक दिन सारे बच्चे स्टेशन से थोड़ी दूर जाकर खेलने का प्लान बनाते है ताकि स्टेशन मास्टर के नज़र में ना पड़े। सारे बच्चे आपस में बात करने लगते है कि कौन सी लाइन पर खेला जाए, क्योंकि गाड़ी एक ही लाइन से जाती है हर रोज़ तो और दो लाइन पर बिना रुकावट के खेल सकते है। पर बच्चे नहीं जानते थे कि गाड़ी तीन में से किस लाइन से गुजरेगी। उनमें से राजू नाम का बच्चा यकीन से कहता है कि गाड़ी तीसरी लाइन पे आएगी, तो हम सब पहली और दूसरी लाइन पर खेल सकते है। लेकिन बच्चे उनकी बात नहीं मानते हैं और उसको अपने खेल में भी शामिल न होने को कहते है। राजू निराश होकर उनसे दूर पहली लाइन पर अकेला खेलने लगता है। सारे बच्चे अपना खेल तीसरी लाइन पर शुरू कर देते है। पटरी पर बिना पांव फिसले चलना उनका खेल था। तो सारे बच्चे एक दूसरे के पीछे पटरी पर चलने लगते है। *गाड़ी आने का समय हो जाता है, स्टेशन मास्टर को बच्चे आसपास दिखाई नहीं देते है, तो गाड़ी को सिग्नल दे देते है। उसी समय लाइनमैन अपना काम करने क्रॉसिंग पे आता है और कुछ दूर बच्चों को पटरी पे खेलते देख लेता है। *गाड़ी स्टेशन से निकल चुकी थी, सिग्नल भी नहीं बदल सकता है, और आवाज़ भी नहीं दे सकता था। जिस लाइन से गाड़ी गुजर रही है उस लाइन पे बहुत सारे बच्चे थे। दूसरी लाइन खराब थी, गाड़ी को दूसरी लाइन पे बदल दे तो गाड़ी में सवार सबकी जान खतरे में पड़ जाएगी। अब बचा पहली लाइन जिसपे राजू खेल रहा था। सोचने का वक्त नहीं था, तुरंत गाड़ी को पहली लाइन पर बदल देता है।