कभी कभी हम सरलता से कट रही ज़िंदगी में अनजाने ही कुछ ऐसी घटनाओं के गवाह बन जाते हैं जो हमारी आत्मा पर एक गहरी छाप छोड़ जाती हैं। कुछ दिन पहले अपनी बहन के घर से लौट रहा था। कुछ सोचते-सोचते ट्रेन पर चढ़ा और एक कोने में खड़ा हो गया।इतने में नज़र एक छह-सात साल की बच्ची पर पड़ी। फटे पुराने कपड़े, पैर बिना चप्पल के और बाल बिखरे हुए मगर होंठों पर एक मुस्कुराहट थी। तभी कानों में ढोलक की आवाज़ पड़ी। देखा तो एक तीस-चालीस साल का आदमी बैठा ढोलक बजा रहा है। ढोलक की तर्ज पर वह बच्ची गुलाटियां मारने लगी और गीत गाने लगी। मेरे मन को एक धक्का-सा लगा। मैंने पहले भी ऐसे दृश्य देखे थे पर कभी उनपर चिंतन नहीं किया। खुद को कोसने की पूरी तैयारी कर चुका था कि तब तक ढोलक की ताल तालियों के शोर में बदल गई। अपने मन को तसल्ली तो दे दी कि मैं एकमात्र बुरा इंसान नहीं हूं, मगर आत्मा पर पड़ी यह छाप जीवन भर रहेगी। प्रत्यक्ष