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ये वक़्त का तकाजा नहीं तो फिर क्या है ए 'उमेश' हर इ

ये वक़्त का तकाजा नहीं
तो फिर क्या है ए 'उमेश'
हर इक रात ढलति गयी
इक नइ सुबह के वासते

-उमेश
ये वक़्त का तकाजा नहीं
तो फिर क्या है ए 'उमेश'
हर इक रात ढलति गयी
इक नइ सुबह के वासते

-उमेश
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Maahi

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