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गीत - शरद ऋतु आने वाली है....2 धूप गुनगुनी जाड़

गीत - शरद ऋतु आने वाली है....2

धूप  गुनगुनी  जाड़े की  शीत  भरी  सौगातों  से, 
गांव खेत सब नगर नहा रहे लम्बी-लम्बी रातें हैं। 
तन में कम्पन है सिकुड़न अरु विहंग चहंचहाते हैं, 
चीर कुहासा धूप गुनगुनी सुवर्ण झोपड़ी सुहाते हैं।। 
पवन सुहानी  सरसर चलती  शूल चुभाने  वाली है। 
                           शरद ऋतु आने वाली है -2।। 

सूरज  धीरे-धीरे तपकर  और  कुहासा छांट रहे, 
यूं चुपके से व्योम सबल अपनी प्रीत निभाते हैं। 
फलियों के संग मन हरषाये मुरझाई कलियां हैं गाये, 
तरुओं  के  तन  को  देखो  अंग-अंग  कुम्हलाते हैं।। 
सुबह ओस  की  प्यारी  बूंदें  अर्ध्य  चढ़ाने  वाली हैं। 
                            शरद ऋतु आने वाली है -2।।

कजरारी पलकें शर्मिली  बिन्दी की  शोभा है प्यारी, 
उतुंग शिखर पर हिम गिरी की लगती शोभा है न्यारी
मनभावन पावस में उर्वी नटखट बचपन सी ललचाये, 
सागर की लहरों सा गिरकर देख बुढ़ापे की लाचारी।
वृष्टि-सृष्टि  दोनों  हो  व्याकुल आग जलाने वाली है। 
                      शरद ऋतु आने वाली है -2।।

                - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

©DN Tripathi Vayakul #शरद_ऋतु
गीत - शरद ऋतु आने वाली है....2

धूप  गुनगुनी  जाड़े की  शीत  भरी  सौगातों  से, 
गांव खेत सब नगर नहा रहे लम्बी-लम्बी रातें हैं। 
तन में कम्पन है सिकुड़न अरु विहंग चहंचहाते हैं, 
चीर कुहासा धूप गुनगुनी सुवर्ण झोपड़ी सुहाते हैं।। 
पवन सुहानी  सरसर चलती  शूल चुभाने  वाली है। 
                           शरद ऋतु आने वाली है -2।। 

सूरज  धीरे-धीरे तपकर  और  कुहासा छांट रहे, 
यूं चुपके से व्योम सबल अपनी प्रीत निभाते हैं। 
फलियों के संग मन हरषाये मुरझाई कलियां हैं गाये, 
तरुओं  के  तन  को  देखो  अंग-अंग  कुम्हलाते हैं।। 
सुबह ओस  की  प्यारी  बूंदें  अर्ध्य  चढ़ाने  वाली हैं। 
                            शरद ऋतु आने वाली है -2।।

कजरारी पलकें शर्मिली  बिन्दी की  शोभा है प्यारी, 
उतुंग शिखर पर हिम गिरी की लगती शोभा है न्यारी
मनभावन पावस में उर्वी नटखट बचपन सी ललचाये, 
सागर की लहरों सा गिरकर देख बुढ़ापे की लाचारी।
वृष्टि-सृष्टि  दोनों  हो  व्याकुल आग जलाने वाली है। 
                      शरद ऋतु आने वाली है -2।।

                - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

©DN Tripathi Vayakul #शरद_ऋतु