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मां के लाड़ प्यार और दुलार प्यार की, मैं करूं वर्ण

मां के लाड़ प्यार और दुलार प्यार की, मैं करूं वर्णन कैसे।
हर शब्दों से हैं परे इसका नाता, कोई बतला ना पाएं ऐसे।।
गम हो जीवन में चाहें जैसे, मां का आंचल सूकूं बन जाता हैं।
मां की पड़ते ही परछाई, नेह जीवन से सारा गम दूर हो जाता हैं।।
मां की ममता को पाने, स्वयं नारायण धरा पर अवतरित होते हैं।
देख मां की मातृत्व वात्सल्य रूप, ये सारा प्राणी चकित होते हैं।।
मां का कर्तव्य, मां की निष्ठा, मां बच्चों पर छाया कर जाती हैं।
गर अाए कभी बच्चों पर कोई गम, हस कर स्वयं सह जाती हैं।।
मां का लाड़ और प्यार और दुलार, पाने को हैं सारी दुनियां तरसे।
मां के रूप सा नहीं कोई दूजा, इसका प्यार तो हैं सब पर बरसे।। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या -2. है..!

👉 आप सभी को दिए गए शीर्षक के साथ collab करना है, अपनी रचना को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..!

👉 Collab करने के बाद comment box में Done अवश्य लिखें, और comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..!

👉 इस प्रतियोगिता में भाग लेने की समय सीमा आज रात्रि 10 बजे तक की है..!
मां के लाड़ प्यार और दुलार प्यार की, मैं करूं वर्णन कैसे।
हर शब्दों से हैं परे इसका नाता, कोई बतला ना पाएं ऐसे।।
गम हो जीवन में चाहें जैसे, मां का आंचल सूकूं बन जाता हैं।
मां की पड़ते ही परछाई, नेह जीवन से सारा गम दूर हो जाता हैं।।
मां की ममता को पाने, स्वयं नारायण धरा पर अवतरित होते हैं।
देख मां की मातृत्व वात्सल्य रूप, ये सारा प्राणी चकित होते हैं।।
मां का कर्तव्य, मां की निष्ठा, मां बच्चों पर छाया कर जाती हैं।
गर अाए कभी बच्चों पर कोई गम, हस कर स्वयं सह जाती हैं।।
मां का लाड़ और प्यार और दुलार, पाने को हैं सारी दुनियां तरसे।
मां के रूप सा नहीं कोई दूजा, इसका प्यार तो हैं सब पर बरसे।। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या -2. है..!

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👉 Collab करने के बाद comment box में Done अवश्य लिखें, और comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..!

👉 इस प्रतियोगिता में भाग लेने की समय सीमा आज रात्रि 10 बजे तक की है..!