लगा के आग सीने में तुम कहां चली हो? मौसम जहां की बारिश हो तुम वहां चली हो बैठी हो तुम जिस दरिया में, छुप के खबरदार ये लपट तुम तक वहां भी पहोंच सकती है पानी तो फिर भी पानी है सीने में जलती लौ इश्क़ की लहू सुखा सकती है। Waste