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मुहब्बत तो लाज़िमी है, होती है जब होती है। गुल


मुहब्बत तो  लाज़िमी है, होती  है जब  होती है।
गुलाबों को तो फूल खिलाने की तलब  होती है।
क्यों न चाहूँ  कि  ग़ज़लों को भी मेरी  दाद मिले,
सुख़नवरी में दाद की हाज़त भी अज़ब होती है।
चलो एक काम करते हैं हम उसके गाँव चलते हैं,
उसे चल कर हंसाने हैं जो ने हंसती है न रोती है।
ख़ूब  किया  हम ने  उन्हें  बारहा   सलाम किया,
तौफ़ीक़येख़ुदा  गर हो, इनायत तो तब  होती है।
फलसफ़ायेइश्क़  का कितना तो कौन है आलिम,
फितरत-ये-इश्क़ में  तो माशूक़ा भी रब  होती है।
ख़ंदा-ये-ग़ुल  और  चिड़ियों की  चहचहाहट  भी,
हँसी अत्फ़ाल की भी रहबर एक मक़्तब होती है।

©JUGNU RAHI
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