अब नही खेलता अल्हड़ बचपन यहाँ, अब नही दोस्तों की टोलियाँ तोड़ती अमरूद पड़ोसियों के पेड़ों से, अब नही पींगें भरती सहेलियां सावन में, अब नही लगती चौपाल शामों को, अब नही पनघट पे जमती जमात, मंज़र बदल गया है मेरे गाँव में, अब सब हो गए हैं मसरूफ पैसा कमाने में। मंज़र बदल गया है, या आँखें बदल गई हैं। #मंज़रबदलगयाहै #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi