बढ़े चले आओ कि चल रहे हो जिस तरफ़ उसी मंज़िल पे उदासियों के डेरे हैं तलब सुबोह की नहीं मुंतज़िर हूँ मैं रात का कि मेरी राह के हमसफ़र अब यही अंधेरे हैं 11/11/22