संभल जाओ ऐ दुनिया वालो वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही ! रब करता आगाह हर पल प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !! लगा बारूद पहाड़, पर्वत उड़ाए स्थल रमणीय सघन रहा नही ! खोद रहा खुद इंसान कब्र अपनी जैसे जीवन की अब परवाह नही !! लुप्त हुए अब झील और झरने वन्यजीवो को मिला मुकाम नही ! मिटा रहा खुद जीवन के अवयव धरा पर बचा जीव का आधार नहीं !! ©Suyash Kamble My Poem On Nature #coldmornings