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अधरों से मेरे लगकर बाँसुरी बन गई हो मंज़िलें तो बहु

अधरों से मेरे लगकर
बाँसुरी बन गई हो
मंज़िलें तो बहुत हैं
तुम आख़िरी बन गई हो

तेरे इश्क की तलब भी
रहती है मुझे हरदम
मैं प्यासा सा एक मुसाफ़िर
तुम सुबह की पहली शबनम...
© abhishek trehan #इश्क #इबादत #कविता #शायरी
अधरों से मेरे लगकर
बाँसुरी बन गई हो
मंज़िलें तो बहुत हैं
तुम आख़िरी बन गई हो

तेरे इश्क की तलब भी
रहती है मुझे हरदम
मैं प्यासा सा एक मुसाफ़िर
तुम सुबह की पहली शबनम...
© abhishek trehan #इश्क #इबादत #कविता #शायरी