चाँद को अपने होने पर गुमान था, मेरे मोहब्बत ने लिख भेजा एक फ़रमान था। मैंने कह दिया चाँद को अपने नूर पर इतराना छोड़ दे, मेरे चाँद को देख सजदा करेगा मुझे बहकाना छोड़ दे। मेरे चाँद ने जब अपनी छत का रुख किया, मैंने देखा इस चाँद ने अपना लाल मुख किया। आज फिर मेरी मोहब्बत का चाँद छत पर खिला था, सबने ईद मना ली,मेरा रोज़ा अभी ना खुला था। चाँद बादल से जब बाहर हुआ, नूर-ए-महताब दो तरफ से मिला। उसने अपने बालों से खेलना शुरू किया, मानो बादल ने घना पहरा चाँद पर किया। उस रोज़ मै ख़ुद को संभाल भी लेता, जो दिल मोहब्बत की पनाह ना लेता, मै गिरते-गिरते संभला संभल के फिर गिर गया, दिल को मनाया बहुत पर वो फिर उसी पर मचल गया। 🎀 Challenge-213 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। आप अपने अनुसार लिख सकते हैं। कोई शब्द सीमा नहीं है।