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कुछ अठन्नी और चार आनों में, कुछ मुफ्त मूंगफली के द

कुछ अठन्नी और चार आनों में,
कुछ मुफ्त मूंगफली के दानों में,
कुछ बंद हो चुकी दुकानों में,
कुछ असभ्यता के मुहानों में,
कुछ गज़लों में, कुछ गानों में,
कुछ मसीन से दूर इंसानों में,
कुछ बड़े होने के अरमानों में,
उम्म्र ने तलासी ली,
तो जेब से कुछ लम्हें मिले,
कुछ गम के थे, कुछ खुशी के थे,
कुछ टूटे थे, कुछ अधूरे थे,
बस कुछ ही सही सलामत थे,
वो लम्हें बचपन के थे...

बचपन जाने दो, बचपना नहीं।। कुछ अठन्नी...
कुछ अठन्नी और चार आनों में,
कुछ मुफ्त मूंगफली के दानों में,
कुछ बंद हो चुकी दुकानों में,
कुछ असभ्यता के मुहानों में,
कुछ गज़लों में, कुछ गानों में,
कुछ मसीन से दूर इंसानों में,
कुछ बड़े होने के अरमानों में,
उम्म्र ने तलासी ली,
तो जेब से कुछ लम्हें मिले,
कुछ गम के थे, कुछ खुशी के थे,
कुछ टूटे थे, कुछ अधूरे थे,
बस कुछ ही सही सलामत थे,
वो लम्हें बचपन के थे...

बचपन जाने दो, बचपना नहीं।। कुछ अठन्नी...
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